मूवी रिव्यूः पीकू

May 09, 2015 | 03:49 PM | 153 Views
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एक चिड़चिड़ा बूढ़ा और उसकी बेटी जो ज्यादातर वक्त बूढ़े के पेट की परेशानियों के बारे में बात करते रहते हैं किसी ने शायद ही ये सोचा होगा की उनकी ये बहस इतनी मजेदार और मनोरंजन से भरपूर होगी।शूजीत सरकार द्वारा निर्देशित ‘पीकू’ एक ऐसी फिल्म है, जहां आप सोच नहीं सकते वैसी सिचुएशन में ह्यूमर पैदा करती है।दीपिका पादुकोण है पीकू, जो एक आर्किटेक्ट है और अपने करियर के साथ-साथ अपने 70 साल के पिता, भाषकोर बनर्जी की जिम्मेदारी भी संभालती है।ये चिड़चिड़ा बुजुर्ग अपनी सेहत को लेकर कुछ ज्यादा ही परेशन रहता है और साथ में उनको रहती है कब्ज की दिक्कत और दिल्ली के चितरंजन पार्क में जहां इनका घर है,वहां हर बात पर जिक्र होता है भाषकोर के खराब पेट का।भाषकोर अपने कॉन्स्टिपेशन की डीटेल्स अपनी बेटी ‘पीकू’ से बांटना नहीं भूलते, फिर चाहे ‘पीकू’ दफ्तर में हो या रोमेंटिक डेट पर।वो अपने पड़ोसियों से बनाकर नहीं रखता, अपनी काम वाली को हमेशा डांटता रहता है और वो यह भी चाहता है कि उसकी बेटी ‘पीकू’ शादी ना करे जिससे वो हमेशा उसका ख्याल रख सके।बच्चन अपना किरदार बहुत बखूबी से निभाते हैं और कुछ सीन्स में तो उनकी कॉमिक टाइमिंग बहुत कमाल की है।इतना ही नहीं फिल्म में इरफान खान भी अहम भूमिका में हैं।इरफान एक प्राइवेट टैक्सी कंपनी के मालिक हैं जो खुद ‘पीकू’ और उसके बाबा को दिल्ली से कोलकाता टैक्सी में ड्राइव करते हुए ले जाते हैं, जब भाषकोर अपने पुश्तैनी घर जाने की जिद करता है।यहीं से ये ड्रामा एक रोड ट्रिप में तब्दील हो जाता है और मानना पड़ेगा इरफान खान अपने ड्राइ ह्यूमर के जरिए फिल्म को कुछ यादगार लम्हे देते हैं।पीकू एक ताजगी भरा किरदार है और दीपिका इस भूमिका से न्याय करती नजर आती हैं।फिल्म के सीन्स जिसमें किरदार आपस में बातचीत करते नजर आए हैं, वो भी बिल्कुल असली और हमारी और आपकी रोजमार्रा की जिंदगी के हिस्से ही लगते हैं।

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