लोकसभा से पास होने के बाद अब जुवेनाइल बिल राज्य सभा में भी पास हो गया है और अब यह राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा।इस बिल के लागू होने के बाद अगर जुर्म ‘जघन्य‘ हो तो 16 से 18 साल की उम्र के नाबालिग को वयस्क माना जाएगा।इस दौरान भी उसे उम्र कैद या मौत की सजा नहीं सुनाई जा सकती है।
हालांकि भारत समेत दुनियाभर के करीब 190 देशों ने ‘यूएन कन्वेंशन ऑन चाइल्ड राइट्स’ पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें किसी बच्चे को ‘वयस्क‘ मानने के लिए उम्र सीमा को 18 साल रखने की सलाह दी गई है।
इस कानून के जरिए नाबालिग को अदालत में पेश करने के एक महीने के अंदर ‘जुवेनाइल जस्टीस बोर्ड‘ ये जांच करेगा कि उसे ‘बच्चा‘ माना जाए या ‘वयस्क‘ और वयस्क माने जाने पर किशोर को मुकदमे के दौरान भी सामान्य जेल में रखा जाएगा।
हालांकि अगर नाबालिग को वयस्क मान भी लिया जाए तो मुकदमा ‘बाल अदालत‘ में चले और आईपीसी के तहत सजा हो उम्र कैद या मौत की सजा नहीं दी जा सकती।दिल्ली सामूहिक बलात्कार कांड के एक नाबालिग आरोपी के रिहाई के कारण यह बहस तेज हो गई थी कि आखिर बच्चों को किस तरह की सजा दी जाए।अपराध संबंधी कानूनों पर हमेशा से बहस चलती रही है कि उन्हें दंडात्मक होना चाहिए या सुधारात्मक।हमेशा से तर्क यही दिया जाता रहा है कि हर व्यक्ति में सुधार की गुंजाइश होती है और इसी कारण मृत्युदंड का विरोध होता रहा है।