अब सोशल मीडिया पर कुछ भी लिख देने पर पुलिस गिरफ्तारी नहीं कर सकती, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा 66ए को खत्म करने का फैसला ले लिया है। इस धारा के तहत पुलिस को ये अधिकार था कि वो किसी भी सोशल मीडिया यूजर को उसके द्वारा लिखी गई किसी ऐसी बात पर गिरफ्तार कर सकती थी जो उसे आपत्तिजनक लगे, या इस बात पर कोई शिकायत दर्ज कराए लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. पुलिस को इस तरह की गिरफ्तारी से पहले मजिस्ट्रेट से इजाजत लेनी होगी।सरकार ने कोर्ट में इस एक्ट के बचाव में यह दलील दी है, क्योंकि इंटरनेट की पहुंच अब बहुत व्यापक हो चुकी है, इसलिए इस माध्यम पर टीवी और प्रिंट माध्यम के मुकाबले ज्यादा नियमन होना चाहिए।सरकार ने तर्क दिया है कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तरह यह किसी संगठन से संचालित नहीं होता. ऐसे में जवाबदेही देने के लिए इस एक्ट का होना जरूरी है। सरकार का कहना है कि सिर्फ दुरुपयोग के डर से इस कानून को खत्म नहीं किया जा सकता है।इस फैसले के बाद फेसबुक, ट्विटर सहित सोशल मीडिया पर की जाने वाली किसी भी कथित आपत्तिजनक टिप्पणी के लिए पुलिस आरोपी को तुरंत गिरफ्तार नहीं कर पाएगी। सर्वोच्च अदालत ने केंद्र के उस आश्वासन पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें कहा गया था कि कानून का दुरुपयोग नहीं होगा। बेंच ने कहा कि सरकारें आती हैं और जाती रहती हैं, लेकिन धारा 66 ए हमेशा के लिए बनी रहेगी। कोर्ट ने हालांकि आईटी ऐक्ट के दो अन्य प्रावधानों को निरस्त करने से इनकार कर दिया, जो वेबसाइटों को ब्लॉक करने की शक्ति देता है।आईटी ऐक्ट की इस 'बदनाम धारा' के शिकार उत्तर प्रदेश में एक कार्टूनिस्ट से लकेर पश्चिम बंगाल में प्रोफेसर तक रह चुके हैं। हाल ही में आजम खान को लेकर फेसबुक पर किए गए एक कॉमेंट की वजह से उत्तर प्रदेश के एक 19 वर्षीय छात्र को भी जेल की हवा खानी पड़ी थी। छात्र के खिलाफ आईटी ऐक्ट की धारा 66ए समेत अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था।