उत्तर प्रदेश के आगरा में एक आरटीआई ऐक्टिविस्ट उस वक्त चकरा गया, जब उनके पास दो वर्षों पहले मांगी गई एख जानकारी का जवाब 40 हजार पन्नों में पहुंचा। उसके बारे में उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा। आरटीआई के जवाब को पढ़ने में उन्हें कई महीने का वक्त लग जाएगा।आखिरकार जोशी ने वर्ष 2012 में नगर निगम से पूछा था कि साल 2000 से 2012 तक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स पर कितनी बिजली और पैसा खर्च किया हुआ था। विभाग ने कुछ सौ पन्नों में नहीं, पूरे 40 हजार पन्नों के दस्तावेज के साथ इसका जवाब भेजा है। सूचना के अधिकार कानून के तहत किसी भी विभाग को जवाब एक महीने के अंदर देना होता है। हालांकि, सूचना आयोग की सख्ती के बाद नगर निगम ने दो साल बाद जबाब दिया, लेकिन इतना लंबा कि पूरे 40 हजार पन्नों का दस्तावेज तैयार हो गया। जोशी ने बताया कि विभाग ने आरटीआई का जो जवाब भेजा है, उसमें उनके सारे सवालों का नहीं, सिर्फ एक सवाल जवाब िदया है, अभी चार और बिंधुओं पर जवाब मिलना बाकी है। आगरा में वाटर सप्लाई, सीवेज और ड्रेनेज सिस्टम पर सुप्रिम की अनुश्रवण समिति के सदस्य डीके जोशी ने बताया कि यमुना के पानी की सफाई के लिये आगरा में बेतहाशा खर्च किया जा रहा है, लेकिन अब भी युमुना में बिना ट्रीट किया पानी ही भेजा जा रहा है और नदी की हालत दिन प्रति दिन खराब होती जा रही है। यमुना की लडाई लडने के लिये जोशी अब सुप्रिम कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे है।