केईएम अस्पताल में ज्यादती के बाद 42 साल तक कोमा में रहीं नर्स अरुणा शानबाग की सोमवार को मौत हो गई।वह एक जून को 68 साल की होने वाली थीं।केईएम अस्पताल में उनका बर्थडे मनाने की तैयारी चल रही थी।पिछले सप्ताह मंगलवार को उनकी तबीयत ज्यादा खराब हो गई थी।सांस की तकलीफ बढ़ जाने के बाद उन्हें आईसीयू में ले जाया गया था।वहां से वह नहीं लौट सकीं।अरुणा 42 साल से केईएम अस्पताल के बेड पर पड़ी थीं।अस्पताल के स्टाफ उन्हें घर का सदस्य मानते थे।एक नर्स ने बताया कि स्टाफ ने उनका 68वां जन्मदिन मनाने की तैयारी कर रखी थी।उनके कमरे में रंग-रोगन किया जा चुका था।एक हादसे ने अरूणा की जिन्दगी बदल डाली थी।दरअसल केईएम अस्पताल में नर्स का काम करने वाली अरुणा शानबाग 27 नवम्बर 1973 को ड्यूटी पर आईं।वहीं काम करने वाले एक क्लीनर सोहनलाल भरता वाल्मीकि ने अकेले में पाते ही अरुणा पर हमला कर दिया। उन्हें जंजीरों में जकड़ कर बलात्कार किया।सबूत मिटाने के लिए गला घोंट कर जान लेने की कोशिश भी की।जब उसे लगा कि वो मर चुकी है तो छोड़ कर फरार हो गया।लेकिन अरुणा मरीं नहीं।बेहद प्रताडि़त किये जाने की वजह से वह कोमा में चली गईं।अरुणा हमले के बाद ही अपाहिज हो गई थीं।जांच में पुलिस को कुछ सुराग हाथ लगे और सोहनलाल गिरफ्तार कर लिया गया।अरुणा पुलिस को ये भी नहीं बता सकीं कि उसके साथ किस कदर ज्यादती की गई।सोहनलाल पर लूटपाट और हत्या के प्रयास का केस चला और सात साल की छोटी सी सजा दी गई।सूत्रों की मानें तो सोहनलाल अपना नाम बदल कर दिल्ली के एक अस्पताल में आज भी काम कर रहा है।आपको बता दें कि पेशे से जर्नलिस्ट और लेखिका पिंकी विरानी ने अरुणा की इस दास्तान पर किताब लिखी। उन्होंने सोहनलाल को सजा दिलवाने की भी कोशिश की, लेकिन नाकाम रहीं।अरुणा की तकलीफ को देखते हुए पिंकी विरानी ने उनके लिए सुप्रीम कोर्ट में इच्छा मृत्यु की मांग की लेकिन, कोर्ट ने उसे अस्वीकार कर दिया गया था।