करोड़ों हिंदुओं की आस्था की प्रतीक गंगा नदी की निर्मलता और अविरल प्रवाह को लेकर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने केंद्र सरकार की जमकर खबर ली है। एनजीटी ने शुक्रवार को केंद्र सरकार से कोई एक जगह बताने को कहा जहां गंगा नदी साफ है।
सरकार के तरीके पर निराशा प्रकट करते हुए एनजीटी ने कहा कि वास्तविकता में गंगा की निर्मलता और अविरल प्रवाह को लेकर लगभग कुछ भी नहीं हुआ है। हरित प्राधिकरण ने कहा कि केंद्र और राज्य इतने सालों से केवल जिम्मेदारी एक दूसरे पर डाल रहे हैं और जमीन पर कुछ ठोस नहीं हुआ है।
एनजीटी के अध्यक्ष जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि क्या यह सही है कि सफाई अभियान के नाम पर गंगा को बद से बदतर बनाने के लिए 5000 करोड़ रपए से ज्यादा धनराशि खर्च हो चुकी है। हम यह जानना नहीं चाहते कि आपने इस धनराशि को राज्यों को आवंटित किया है और खुद ही खर्च किया है।
जस्टिस कुमार ने कहा कि गंगा नदीं के प्रवाह के 2500 कि.मी के दायरे में सरकार एक भी ऐसा स्थान बताए, जहां नदी की हालत सुधरी हो। गंगा की सफाई और निर्बाध प्रवाह से नाराज एनजीटी ने कहा कि असलियत में कुछ हुआ ही नहीं है। गंगा की सफाई के नाम पर वर्षों से केंद्र और राज्य सरकारें एक दूसरे पर जिम्मेदारियां थोपते रहे हैं और इस कारण जमीन पर कुछ भी ठोस नहीं हुआ है।
जल संसाधन मंत्रालय की ओर से वकील ने एनजीटी की पीठ से कहा कि 1985 से पिछले साल तक गंगा के पुनरुद्धार पर करीब 4000 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। वकील ने कहा कि विश्व बैंक से पोषित एनजीआरबीए का उद्देश्य प्रदूषण को प्रभावी तरीके से कम करना और गंगा का संरक्षण करना था और कुल परियोजना लागत का 70 प्रतिशत केंद्र ने दिया तथा बाकी खर्च राज्यों ने वहन किया। हरित अधिकरण ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की राज्य सरकारों समेत सभी संबंधित एजेंसियों से अपने सुझाव देने को कहा।