एनी बेसेंट की 168 वीं जयंती आज

October 01, 2015 | 11:26 AM | 7 Views
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एनी बेसेंट इस नाम को तो हर कोई जानता है।लंदन में जन्मी बेसेंट एक अत्यंत कुशल संस्थापिका, लेखिका और उच्चकोटि की वक्ता थीं।इन्होंने भारत में भी अपना काफी योगदान दिया।

बेसेंट की जीवनी

एनी बेसेंट का जन्म 1 अक्टूबर 1847 को लंदन के वुड परिवार में हुआ।एनी बेसेंट के पिता डाॅक्टर थे।एक कुशल चिकित्सक के साथ वो कई भाषाओं के ज्ञाता थे।एनी बेसेंट की मां एक आयरिस महिला थी।जब बेसेंट पाँच वर्ष की थीं तभी उनके पिता का स्वर्गवास हो गया। उनका पालन-पोषण उनकी माँ द्वारा अभावों की स्थितियों में हुआ।बचपन में ही एनी बेसेंट की अद्भुत प्रतिभा झलकने लगी थी जिससे प्रभावित होकर एक शिक्षाविद् महिला सुश्री मेरियट ने उन्हें उनकी माँ से अपने संरक्षण में ले लिया। मेरियट के संरक्षण में बेसेंट यूरोप और जर्मन जाकर वहां की भाषा सीखी। एनी ने लैटिन और फ्रेंच भाषाओं का गहन अध्ययन किया। एनी बेसेंट का विवाह 22 वर्ष की उम्र में गिरजाघर के पादरी रेवेरेंड फ्रैंक बेसेंट से हुआ।उनके दो बच्चे हुए लेकिन दोनों के बीच विचार की असमानता की वजह से मनभेद था।इस वजह से उन्होंने पति से संबंध खत्म कर सम्पूर्ण मानवता से नाता जोड़ने का संकल्प लिया।उनके दोनों बच्चे ब्रिटिश क़ानून के कारण उनके पति के पास ही रहे।तलाक के बाद एनी बेसेंट को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा जिस वजह से वो स्वतंत्र विचार संबंधी लेख लिखने लगी जिससे उन्हें पैसे मिलने लगे।इसके बाद वो महान पत्रकार विलियम स्टीड के संपर्क में आईं और लेखन, प्रकाशन के काम को मन लगा कर करने लगी।वह इंगलैंड की सबसे शक्तिशाली महिला ट्रेड यूनियन की सचिव रहीं और अपना अधिकांश समय मजदूरों, अकाल पीड़ितों, अभावग्रस्तों को सुविधाएँ दिलाने में बिताया।

भारत में एनी बेसेंट

1878 में वो पहली भारत के लिए अपने विचार बताए। इसके बाद भारतवासियों के मन मे उनके लिए स्नेह बढ़ गया।16 नवंबर 1893 को एनी एक कार्यक्रम के साथ भारत आईं और सांस्कृतिक नगर काशी (बनारस) को अपना केन्द्र बनाया। काशी के तत्कालीन नरेश महाराजा प्रभु नारायण सिंह से उनकी मुलाकात हुई और काशी नरेश सभा भवन के आस-पास की भूमि प्राप्त कर 7 जुलाई 1898 को सेंट्रल हिन्दू कॉलेज की स्थापना की। सामाजिक बुराइयों जैसे बाल विवाह, जातीय व्यवस्था, विधवा विवाह, विदेश यात्रा आदि को दूर करने के लिए ब्रदर्स ऑफ सर्विस नामक संस्था बनाई। उन्होंने अपने 40 वर्ष भारत के सर्वांगीण विकास में लगाये।उस समय मदन मोहन मालवीय एक विश्वविद्यालय की स्थापना करना चाहते थे लेकिन नियमानुसार इसके लिए एक कॉलेज का होना अनिवार्य था। मालवीय जी ने एनी बेसेंट के सामने सेन्ट्रल हिंदू कॉलेज का प्रस्ताव रखा तो एनी बेसेंट ने तत्काल स्वीकार करते हुए कहा कि यह विद्यालय आपका ही है। वह काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की सह-संस्थापिका के रूप में जानी जाती हैं। एनी बेसेंट ने भारत में पुनर्जागरण के लिए शिक्षा, नारी शिक्षा, आध्यात्मिक साहित्य का सृजन एवं विकास, धर्म का प्रसार, राजनीति आदि सभी क्षेत्रों में काम शुरू किए।

भारत की आजादी में एनी बेसेंट

भारत को स्वतंत्र कराने के प्रति वह चिन्तित थीं और इस दिशा में काम करने के लिए यहाँ के राजनीतिज्ञों से भी संपर्क बनाने लगी थीं। देशवासियों ने उन्हें माँ वसंत कहकर सम्मानित किया तो महात्मा गांधी ने उन्हें ‘वसंत देवी’ की उपाधि से विभूषित किया। भारतीय राजनीति में उन्होंने 1914 में 68 वर्ष की उम्र में प्रवेश किया और आते ही एक अत्यन्त प्रभावशाली क्रांतिकारी आंदोलन होम रूल का प्रारंभ किया। यह आंदोलन भारतीय एवं कांग्रेस की राजनीति का एक नया जन्म माना जाता है। उस आंदोलन ने भारत की राजनीति तथा ब्रिटिश सरकार की नीति में आमूल परिवर्तन ला दिया। एनी बेसेंट ने पूरे देश का भ्रमण प्रारंभ कर दिया। उन्होंने जगह-जगह पर होम रूल की शाखाएँ खोलीं तथा लोगों को स्वराज्य का अर्थ एवं उपयोगिता को समझाया। 1914 में ही उन्होंने दो पत्रिकाएँ ‘न्यू इंडिया दैनिक’ तथा ‘द कॉमन व्हील साप्ताहिक’ प्रकाशित करवाईं। उन पत्रिकाओं में ब्रिटिश शासन के विरोध में लिखने के कारण उन्हें 20 हज़ार रुपये का दंड भी देना पड़ा। उन्होंने अमरीका तथा इंग्लैंड में भी होमरूल की शाखाएँ खोलीं। वे शाखाएँ भारत की स्वतंत्रता के लिए कार्य करती थीं।1917 में ही कलकत्ता में कांग्रेस की सभा में उन्हें राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। 1919 तक वे सक्रिय राजनीति में रहने के पश्चात् राजनीति से अलग हो गईं।

एनी बेसेंट की उपलब्धियां

उन्होंने भारतीय धर्म का गंभीर अध्ययन किया। उन्होंने गीता का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया। उन्होंने लगभग 200 पुस्तकें लिखी हैं। कई पत्रिकाओं का प्रकाशन किया। उन्हें छह जुलाई 1907 में ही थियोसाफिकल सोसायटी का अध्यक्ष चुन लिया गया था जो वो पूरे जीवन तक रहीं। 1908 में अडयार (चेन्नई) में वसंत प्रेस का शुभारंभ किया। 1918 में इंडियन भारत स्कॉउट की नींव रखी। 14 दिसंबर 1921 को बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ने इन्हें डॉक्टर ऑफ़ लेटर्स की उपाधि से विभूषित किया।अडयार में जो थियोसाफिकल सोसायटी का अन्तरराष्ट्रीय मुख्यालय है, उन्होंने सभी धर्मों के मन्दिरों की स्थापना की।

भारत प्रेमी, हिन्दू धर्म प्रेमी और सच्चे अर्थों में शिक्षा शास्त्री एनी बेसेंट ने 20 सितंबर सन् 1933 को अडयार (चेन्नई) में उनका देहांत हो गया।उनकी इच्छाओं के अनुसार उनका दाह संस्कार हुआ। उनका अस्थि कलश बनारस लाया गया और दशाश्वमेध घाट पर उसका विसर्जन हुआ।

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