एक नन्हें कलाकर डिब्बे बजाते बजाते बन गये तबला उस्ताद। बात चल रही है उस्ताद रफीउद्दीन साबरी की। यह एक जान माने तबला वादक है। उनका पिता उस्ताद साघिर अहमद ने जब बेटे का डिब्बा बजाते हुए देखा तो अपने दोस्त से तबला लाकर रियाज़ के लिए दिया।
रफ़ीउद्दीन ने उस्ताद अब्दुल वाहिद खां साहब से तालीम ली और साबरी ऑल इंडिया रेडियो के ए ग्रेड कलाकार बने और देश विदेश में कई प्रस्तुतियां दीं.
बताया जाता है कि तबला हज़ारों साल पुराना वाद्य यंत्र है, पर एक जिक्र यह भी होता है कि 13वीं शताब्दी में भारतीय कवि और संगीतज्ञ उस्ताद अमीर ख़ुसरो ने पखावज के दो टुकड़े करके तबले का आविष्कार किया। तबले के घरानों में दिल्ली, लखनऊ, फ़र्रुखाबाद, बनारस और पंजाब घराना मशहूर हैं।
आधुनिक युग में नवीनीकरण पद्दतियों के बीच जीवन बिताने वाले संगीत प्रेमियों को एक बात याद दिलाना अवश्यक हुआ है।