करगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना की कस्टडी में बेरहमी से मारे गए शहीद कैप्टन सौरभ कालिया के मामले को मोदी सरकार भी अंतरराष्ट्रीय अदालत में नहीं ले जाएगी। पिछली यूपीए सरकार ने भी कहा था कि इस मामले को अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत में ले जाना संभव नहीं है। शहीद कालिया के पिता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इस मामले को अंतरराष्ट्रीय अदालत में ले जाने की मांग की थी जिसका जवाब मोदी सरकार को अगली सुनवाई की तारीख 25 अगस्त को देना है। आपको बता दें कि 4 जाट रेजिमेंट के कैप्टन सौरभ कालिया और 5 अन्य जवान-अर्जुन राम, भंवर लाल, भिक्खा राम, मूला राम और नरेश सिंह 15 मई, 1999 को करगिल के काकसर सब-सेक्टर में लापता हो गए थे। अगले महीने 9 जून को पाकिस्तान ने उनके बुरी तरह से क्षत-विक्षत शव भारत को लौटाए थे। सौरभ कालिया के शव की स्थिति को देखने के बाद पूरे देश में आक्रोश की लहर फैल गई थी और इसे युद्धबंदियों को लेकर जिनीवा संधि का उल्लंघन बताया गया था। एक साल पहले एक पाकिस्तानी सैनिक का विडियो भी यू-ट्यूब पर आया था जिसमें वह कह रहा था कि करगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना के एक अधिकारी को यातना देने के बाद उसकी हत्या कर दी गई थी।शहीद सौरभ कालिया के पिता डॉ. एन के कालिया पिछले 16 सालों से अपने बेटे को इंसाफ दिलाने के लिए सरकारों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में गुहार लगा चुके हैं। लेकिन पिछली यूपीए सरकार की तर्ज पर मोदी सरकार ने भी इस केस को आगे नहीं ले जाने का फैसला किया। एन के कालिया की ओर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर सरकार का कहना है कि इसे अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत में ले जाना व्यावहारिक नहीं है। संसद में राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर के सवाल पर विदेश राज्यमंत्री वी के सिंह की ओर से दिए गए जवाब से सरकार का आधिकारिक रुख सामने आया है।वी के सिंह ने अपने जवाब में पिछले दिनों कहा था कि पाकिस्तानी सेना के इस जघन्य और नृशंस अपराध के बारे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को बताया जा चुका है। 22 सितंबर, 1999 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा और अप्रैल 2000 में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में भारत बयान दे चुका है। अंतरराष्ट्रीय कोर्ट से कानूनी तौर पर न्याय पाने के विकल्प भी गंभीरत से विचार किया गया, लेकिन यह व्यावहारिक नहीं लगा।